अंग्रेजी और हिंदी में समान रूप से लिखने वाले त्रिलोकनाथ पांडेय की पहली औपन्यासिक कृति 'प्रेम लहरी' मुगलों के समय की जनश्रुतियों के रेशों से बुनी हुई एक ऐसी रंजक और विस्मयजनक प्रेम कथा है, जिसका जिक्र इतिहास के पन्नों में नहीं है, किंतु जनसमाज में कथक्कड़ों के मुंह से इस अनुपम कहानी के कुछ अंश यदा-कदा सुनायी देते हैं। इस रोचक प्रेम प्रकरण के नायक सम्राट शाहजहां के राज्य कवि एवं सम्राट पुत्र दारा शिकोह के ब्राह्मण आचार्य पंडितराज जगन्नाथ हैं और नायिका बादशाह शाहजहां की चौदहवीं संतान मुगल शहजादी गौहर आरा है, जिसका उपनाम 'लवंगी' था। भारत के अंतिम मुगल राजवंश में हिंदू-मुस्लिम जातियों?की प्रेम कहानियां तो कई मिलती हैं, पर किसी ऐश पसंद बादशाह की बेटी की किसी असाधारण पंडित से आशनाई की यह संभवत-अकेली प्रेम कथा है जो मुगल दरबार के जघन्य कुचक्रों के बीच तलवार की धार पर परवान चढ़ती है। 'गंगा लहरी' स्वयं पंडितराज जगन्नाथ द्वारा रचित संस्कृत काव्य है, जिसमें जहां-तहां उनकी खुद की प्रेम कहानी की झलक समाहित है।यह कथा इतिहास की अनोखी घटना है, जिसमें लोकश्रुतियों के आधार पर मध्यकालीन सत्ता-संरचना के मध्य दो बेमेल धर्मों और दो जुदा समूहों के बीच कदापि न पाटी जा सकने वाली खाली जगह में प्रेम को पुषपित होते दर्शाया गया है। समीक्ष्य कहानी के साथ प्रेम की वह अप्रतिम ऊंचाई जुड़ी हुई है, जिसे न तो सामाजिक लांछना और न दुनियावी रस्मोंरिवाज छु पाते हैं, हालांकि वे उन्हें सह नहीं सकते। लेखक ने प्रेमहृदयों की इस शाश्वत तड़प को जिस बेबाकी और आत्मीयता से शब्दों में बांधा है, वह उपन्यास को एक गहरी पठनीयता से जोड़ती है। इस उपन्यास में मध्य युग की जटिल सामाजिक रूढ़ियों और पारिवारिक बंधनों के पार जाकर प्रेम का स्वावलंबी मार्ग तलाशने वाली राजपुत्री के संघर्ष और उसकी साहसिकता का प्रभावी चित्रण किया है।जवानी की दहलीज पर पैर रखने के बाद लवंगी का जिस घड़ी पहली बार पंडित जगन्नाथ से आमना-सामना हुआ, उसी क्षण वह उनके प्रेम में दिल हार बैठी और बेसाख्ता कह उठी, 'मुझे आप में खुदा का नूर दिखता है।' इससे इंगित होता है कि लवंगी और जगन्नाथ का प्रेम जिस्मानी कम, रूहानी ज्यादा था। पहली मुलाकात के समय लवंगी ने जगन्नाथ से मीराबाई का एक प्रेम गीत सुनाने की फरमाइश की थी। गीत सुनते ही मदहोशी में डूबी लवंगी ने सहसा आगे बढ़कर जगन्नाथ का हाथ थाम लिया। जगन्नाथ का मन विकल हो गया। वे मुगलों की ताकत से वाकिफ थे।
मगल शहजादी का प्रेम